Apara Ekadashi Vrat Katha

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ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
ज्‍येष्‍ठ मास के कृष्‍ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी कहा जाता है।अपरा एकादशी को लेकर मान्यता प्रचलित है कि इस दिन व्रत रखने से जातकों को उनके जाने-अनजाने में किए गए पापों से भी मुक्ति मिल जाती है।
अपरा एकादशी व्रत कथा
पुराण में अपरा एकादशी व्रत की कथाप्राचीन काल में महीध्वज नाम का एक दयालु राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज उससे ईर्ष्या करता था। एक दिन उसने अपने बड़े भाई की हत्या कर दी और उसके शव को एक पीपल के पेड़ के नीचे दफना दिया। इस अकाल मृत्यु के कारण महीध्वज प्रेत बन गया और आसपास के लोगों को परेशान करने लगा। एक दिन धौम्य ॠषि वहां से जा रहे थे, तभी उन्होंने उस प्रेत को देखा और अपने ज्ञानचक्षु से उस प्रेतात्मा के जीवन से जुड़ी जानकारियां प्राप्त कर लीं। प्रेत की परेशानियों को दूर करने के लिए उसे परलोक विद्या दी। इसके बाद राजा महीध्वज को प्रेत योनि से मुक्ति के लिए धौम्य ॠषि ने स्वयं अपरा एकादशी का व्रत रखा। उस व्रत से जो भी पुण्य ॠषि धौम्य को प्राप्त हुआ उन्‍होंने वह सारा पुण्य राजा महीध्वज को दे दिया। पुण्य के प्रताप से राजा महीध्वज को प्रेत योनी से मुक्ति मिल गई। इसके लिए राजा ने धौम्य ॠषि को सप्रेम धन्यवाद दिया और भगवान विष्णु के धाम बैकुण्ठ चले गए।

This picture was submitted by Sunil Sharma.

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