KalAshtami Vrat Katha evam Mahatva

🌼 कालाष्टमी व्रत कथा एवं महत्व

Kalashtami Vrat Katha Evam Mahatva

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📅 तिथि व महत्व
प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी कहा जाता है।
यह दिन विशेष रूप से भगवान काल भैरव को समर्पित है।
कार्तिक मास की कालाष्टमी को महाकालाष्टमी कहा जाता है और इसका विशेष महत्व है।
इस दिन उपवास एवं पूजन करने से पापों का नाश होता है और आयु, आरोग्य तथा बल की प्राप्ति होती है।

🙏 व्रत विधि
– प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
– घर अथवा मंदिर में काल भैरव जी का पूजन करें।
– काले तिल, सरसों का तेल, पुष्प, धूप-दीप एवं नैवेद्य अर्पित करें।
– दिनभर व्रत रखकर रात्रि को भैरव चालीसा या स्तुति का पाठ करें।
– काले कुत्ते को भोजन कराना और तिल का दान करना शुभ माना जाता है।

📖 व्रत कथा
पुराणों में वर्णन है कि एक समय ब्रह्मा, विष्णु और महेश में श्रेष्ठता का विवाद हुआ।
ब्रह्मा जी ने स्वयं को श्रेष्ठ बताया, परंतु भगवान शंकर ने इसे अस्वीकार किया।
ब्रह्मा जी ने जब शिव का अपमान किया, तब उनके क्रोध से काल भैरव प्रकट हुए।
भैरव ने अपने नख से ब्रह्मा के पाँचवें सिर को काट दिया।
इस अपराध से वे ब्रह्महत्या के दोष से ग्रस्त हो गए और समस्त लोकों में भटकते रहे।
अंततः काशी में उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया और वहीं काल भैरव के रूप में प्रतिष्ठित हुए।
तभी से कालाष्टमी पर उनकी पूजा का विशेष विधान है।

✨ व्रत का फल व लाभ
– कालाष्टमी का व्रत करने से भूत-प्रेत, बाधा और भय दूर होते हैं।
– अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है और आयु की वृद्धि होती है।
– न्याय, शक्ति और साहस की प्राप्ति होती है।
– धन-सम्पत्ति में वृद्धि और पापों का क्षय होता है।
– भैरव जी की कृपा से जीवन में सफलता और शत्रु पर विजय मिलती है।

🌸 निष्कर्ष
कालाष्टमी का व्रत केवल साधारण उपवास नहीं,
बल्कि यह आत्मसंयम और भक्ति का पर्व है।
इस दिन भगवान काल भैरव का पूजन करने से भक्त निर्भय होकर धर्ममार्ग पर अग्रसर होता है और शिवकृपा का पात्र बनता है।

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