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🔶 संतोषी माता वचन (अमृत वचन) – विस्तार सहित

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1.
“जिसे संतोष नहीं, उसे कभी सुख नहीं।
और जिसे माँ संतोषी की भक्ति मिल गई,
उसे किसी और सुख की तलाश नहीं।”
🌿 भावार्थ:
माँ सिखाती हैं कि सच्चा सुख भीतर से आता है,
ना कि बाहरी वस्तुओं से।
भक्ति तब फल देती है जब मन की दौड़ रुककर
कृतज्ञता और संतोष में ठहर जाती है।
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2.
“संतोष ही सबसे बड़ी पूजा है,
और लोभ सबसे बड़ा विघ्न।”
🌿 भावार्थ:
भक्ति के मार्ग में लोभ ऐसा काँटा है जो फूल की सुगंध छीन लेता है।
जब मन लोभ से मुक्त होता है,
तब पूजा का हर क्षण माँ के हृदय तक पहुँचता है।
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3.
“जिसने अपने हिस्से में प्रसन्न रहना सीख लिया,
वह माँ का सच्चा प्रिय है।”
🌿 भावार्थ:
असंतोष हमें हमेशा दूसरों से तुलना करवाता है,
जो दुख का कारण है।
माँ चाहती हैं कि हम जो मिला है,
उसमें आनंद ढूँढें, तभी कृपा बनी रहती है।
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4.
“भक्ति में धैर्य ही वह दीप है
जो अंधकार में भी प्रकाश देता है।”
🌿 भावार्थ:
माँ के दरबार में प्रार्थना का उत्तर हमेशा मिलता है,
पर सही समय पर।
धैर्य रखने वाला भक्त ही माँ के चमत्कार को देख पाता है।
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5.
“दूसरों के सुख में प्रसन्न होना
माँ को सबसे प्रिय अर्पण है।”
🌿 भावार्थ:
ईर्ष्या मन को कलुषित करती है और भक्ति को कमजोर।
दूसरे की खुशी को अपना मानकर आनंदित होना
ही सच्चा संतोष है, जो माँ को प्रसन्न करता है।
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6.
“हर शुक्रवार का व्रत मन के लोभ को मिटाने का अवसर है।”
🌿 भावार्थ:
यह व्रत सिर्फ उपवास का नहीं,
बल्कि मन को ईर्ष्या, क्रोध और लालच से शुद्ध करने का है।
तभी यह माँ का आशीर्वाद खींचता है।
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7.
“कृतज्ञ हृदय में ही कृपा का वास होता है।”
🌿 भावार्थ:
जब हम हर परिस्थिति में आभार व्यक्त करते हैं,
तो माँ हमारी झोली में संतोष का अनमोल रत्न डाल देती हैं।
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8.
“कम में सुख ढूँढना ही माँ की भक्ति का पहला पाठ है।”
🌿 भावार्थ:
लालच मन को बेचैन करता है,
जबकि कम में संतोष रखने से मन स्थिर और पवित्र रहता है।
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9.
“धन से बढ़कर मन का संतोष है,
क्योंकि धन क्षणिक है और संतोष असीम।”
🌿 भावार्थ:
माँ का आशीर्वाद भौतिक वस्तुओं से बढ़कर
मानसिक शांति और आत्मिक संतोष देता है।
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10.
“भक्ति का माप भेंट से नहीं,
बल्कि संतोष से होता है।”
🌿 भावार्थ:
माँ के दरबार में अमीर-गरीब का भेद नहीं।
निर्मल हृदय और संतुष्ट मन ही सच्ची भेंट है।
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11.
“जो अपने हिस्से से अधिक की चाह नहीं रखता,
वह माँ का सच्चा आराधक है।”
🌿 भावार्थ:
भाग्य को स्वीकार करना और उसमें प्रसन्न रहना
भक्ति की सबसे बड़ी सीढ़ी है।
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12.
“संतोष में ही स्वास्थ्य, प्रेम और शांति बसते हैं।”
🌿 भावार्थ:
जब मन संतुष्ट होता है,
तो चिंता कम होती है, स्वास्थ्य सुधरता है
और रिश्तों में मिठास आती है।
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13.
“भक्ति में लोभ उतना ही हानिकारक है,
जितना फूल में काँटा।”
🌿 भावार्थ:
लोभ भक्ति की कोमलता और सुगंध छीन लेता है।
इसे त्यागकर ही माँ का आशीर्वाद पाया जा सकता है।
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14.
“हर दिन को माँ का प्रसाद मानकर स्वीकार करो,
चाहे वह जैसा भी हो।”
🌿 भावार्थ:
जब हम हर परिस्थिति को ईश्वर की देन मानते हैं,
तो शिकायत खत्म होती है और संतोष बढ़ता है।
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15.
“माँ के आशीर्वाद का सबसे बड़ा चमत्कार – मन की शांति।”
🌿 भावार्थ:
भक्ति का सबसे मूल्यवान फल
मन का संतोष और स्थिरता है,
जो किसी भी सांसारिक सुख से ऊपर है।
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16.
“भक्ति में आडंबर का नहीं,
निर्मल हृदय का महत्व है।”
🌿 भावार्थ:
माँ को बाहरी दिखावा नहीं चाहिए।
वे केवल सच्ची भावना और विनम्रता को स्वीकार करती हैं।
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17.
“जो दूसरों की खुशी में अपनी खुशी ढूँढ ले,
उसका मन कभी खाली नहीं होता।”
🌿 भावार्थ:
यह निःस्वार्थ भाव ही माँ संतोषी का सबसे बड़ा उपदेश है,
जो हृदय को सदैव भरपूर रखता है।
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18.
“संतोष ही भक्ति का बीज है,
और आभार उसका पुष्प।”
🌿 भावार्थ:
जब मन में संतोष का बीज बोया जाता है,
तो जीवन में आभार और आनंद के फूल खिलते हैं।
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19.
“लोभ का त्याग ही माँ की कृपा का पहला द्वार है।”
🌿 भावार्थ:
लोभ हमें कमी का एहसास कराता है,
जबकि संतोष हमें पूर्णता का अनुभव कराता है।
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20.
“सच्चा प्रसाद वही है
जो मन को संतोष और आत्मा को शांति दे।”
🌿 भावार्थ:
भक्ति का उद्देश्य केवल भौतिक लाभ नहीं,
बल्कि मन की तृप्ति और आत्मिक उत्थान है।
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🙏 माँ संतोषी के इन अमृत वचनों को जीवन में उतारें,
ताकि आपका हर दिन संतोष और शांति से भरा हो।
🌺 जय माँ संतोषी 🌺