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🔱 रुद्राष्टकम् स्तोत्रम् (देवनागरी पाठ + भावार्थ)

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1.
नमामीशमीशान निर्वाण रूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्॥
🔸 भावार्थ:
मैं ईश्वर के भी ईश्वर, महादेव को प्रणाम करता हूँ।
वे मोक्षस्वरूप हैं, सर्वव्यापक हैं, वेद और ब्रह्म के स्वरूप हैं।
वे निर्गुण, निर्मल, निश्चल और निष्कामी हैं —
जो चैतन्य रूप में आकाश की तरह सबमें व्याप्त हैं।

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2.
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं
गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकाल कालं कृपालं
गुणागारसंसारपारं नतोऽहम्॥
🔸 भावार्थ:
वे निराकार हैं, ओंकार के मूल हैं, और तुरीय अवस्था (चौथी चेतना) के अधिपति हैं।
जो वाणी, ज्ञान और इंद्रियों की पहुँच से परे हैं।
वे महाकाल हैं, परंतु साथ ही करुणामय भी हैं।
उनकी शरण में जाने से संसार-सागर से पार पाया जा सकता है।
—
3.
तुषाराद्रिसंकाश गौरं गभीरं
मनोभूतकोटि प्रभा श्री शरीरम्।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगंगा
लसद्भालबालेन्दुकण्ठे भुजंगा॥
🔸 भावार्थ:
जो बर्फ जैसे गौरवर्ण के हैं, गंभीर हैं,
हजारों कामदेवों के समान सुंदर दीप्तिमान हैं।
जिनके सिर पर मंदाकिनी गंगा बहती है,
भाल पर चंद्रमा शोभित है और गले में सर्प सुशोभित है।
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4.
चलत्कुण्डलं भ्रुकुटीरेखभासं
नमद्भूतदं भक्तहृद्भ्यवगम्यम्।
निगमावगम्यं मनोवाक्यमदं
नमः शिवं शान्तं शिवं निर्वाणम्॥
🔸 भावार्थ:
जिनके कुंडल लहराते हैं, जिनकी भृकुटि तीव्र और तेजस्वी है,
जो भय का नाश करते हैं, और भक्तों के हृदय में सहज ही अनुभव किए जा सकते हैं।
जो वेदों के द्वारा भी पूर्ण रूप से न समझे जा सकें, वाणी और मन से परे हैं।
उन शिव, शांत और मोक्षस्वरूप प्रभु को प्रणाम।
—
5.
प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं
जगन्नाथ नाथं सदानन्द भाजाम्।
भवद्भव्यान्तं सदा सज्जनानां
शिवं शङ्करं शम्भुमीशं नमामि॥
🔸 भावार्थ:
मैं उन शिव को प्रणाम करता हूँ जो प्रभु, प्राणों के स्वामी, सर्वव्यापक, विश्व के नाथ और सदा आनन्दस्वरूप हैं।
जो भव-बंधन से मुक्त करते हैं और सच्चे श्रद्धालुओं की सदैव रक्षा करते हैं।
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6.
न यावत् उमानाथ पादारविन्दं
भजंतीह लोके परे वा नराणाम्।
न तावत् सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासम्॥
🔸 भावार्थ:
जब तक मनुष्य उमा के नाथ शिव के चरणों की सेवा नहीं करता,
तब तक उसे सुख, शांति या संताप से मुक्ति नहीं मिल सकती।
हे प्रभो! सभी प्राणियों में व्याप्त होकर आप कृपा करें।
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7.
न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम्।
जरामरणदुःखभयातिप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो॥
🔸 भावार्थ:
हे शम्भो! मैं ना योग जानता हूँ, ना जप, ना ही पूजन विधि,
बस आपकी निरंतर शरण में हूँ।
जरा, मरण, दुःख और भय से घिरा हुआ यह प्राणी आपकी कृपा की याचना करता है —
हे शंभो! कृपया रक्षा करें।
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8.
रुद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये।
ये पठंति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति॥
🔸 भावार्थ:
यह रुद्राष्टक स्तोत्र, एक ब्राह्मण (तुलसीदास जी) द्वारा
भगवान हर (शिव) को प्रसन्न करने के लिए रचा गया है।
जो व्यक्ति इसे श्रद्धा से पढ़ते हैं,
उन पर भगवान शम्भु विशेष रूप से कृपा करते हैं।
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🕉️ उपसंहार:
रुद्राष्टकम् का नियमित पाठ करने से —
मन को शांति, आत्मा को शक्ति, और जीवन को साधना का मार्ग प्राप्त होता है।
यह स्तोत्र केवल स्तुति नहीं, प्रभु शिव से आत्मा की सच्ची वार्ता है।
हर हर महादेव! 🔔
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