Saraswati Prarthana Sangrah

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1️⃣
हे माँ सरस्वती! जो चंद्रमा, हिम और शुभ्र वस्त्रों के समान उज्ज्वल हैं,
वीणा और पुस्तक धारण करती हैं, श्वेत कमल पर विराजती हैं,
और ब्रह्मा, विष्णु, महेश द्वारा पूजित हैं —
वे भगवती मेरी रक्षा करें और मेरे अज्ञान का नाश करें।

2️⃣
हे वीणापाणि शारदा,
मेरे हृदय से जड़ता और भ्रम का अंधकार हर लीजिए।
विचारों में सत्य का प्रकाश और वाणी में मधुरता भर दीजिए,
ताकि जो बोलूँ वह निर्मल हो, जो लिखूँ वह कल्याणकारी हो।

3️⃣
हे वाग्देवी,
मेरे शब्द अहंकार नहीं, सेवा बनें;
मेरी वाणी कटुता नहीं, करुणा बोले;
और प्रत्येक वाक्य में आपके श्वेत प्रकाश की सुगंध रहे।

4️⃣
हे सरस्वती माता,
स्मरण-शक्ति को प्रखर करें, एकाग्रता को स्थिर करें।
आलस्य, उदासी और टाल-मटोल का क्षय हो,
और अध्ययन साधना बनकर दिन-प्रतिदिन निखरता जाए।

5️⃣
हे शारदा,
ज्ञान को केवल सूचना नहीं—संस्कार बना दीजिए।
मेरी बुद्धि में विवेक, हृदय में विनय,
और कर्म में परोपकार सदा साथ रहें।

6️⃣
हे भारती,
कलम को सच्चाई, रचना को सार्थकता दीजिए।
जो लिखूँ उसमें लोक-मंगल का भाव हो,
और जो पढ़ूँ वह चरित्र का दीपक बन जाए।

7️⃣
हे वरदायिनी,
मोह, अभिमान और दिखावे की धूल झाड़ दीजिए।
संतोष और संयम का उजास दीजिए,
ताकि विद्या के साथ विनम्रता भी बढ़ती रहे।

8️⃣
हे ब्रह्मचारिणी माँ,
अनुशासन, नियमितता और समय-साधना का बल दीजिए।
हर सुबह मन में प्रेरणा और हर संध्या कृतज्ञता जागे,
लक्ष्य तक पहुँचने की दृढ़ता कभी शिथिल न हो।

9️⃣
हे हंसवाहिनी,
दूध-जल की भाँति विवेक दो—
कथ्य में सार, कथन में शुचिता;
और संगति, अध्ययन व व्यवहार सबमें शुद्ध चयन का आशीष दो।

🔟
हे वीणा-वाणी,
संगीत में स्नेह, शब्दों में सौम्यता,
विचारों में स्पष्टता और अभिव्यक्ति में मर्यादा दीजिए,
ताकि कला भी पूजा बने, कला से अहं न उपजे।

1️⃣1️⃣
हे वाणीजननी,
परीक्षा के क्षणों में धैर्य और स्वच्छ स्मरण दीजिए।
घबराहट को प्रार्थना में, भय को विश्वास में बदल दीजिए,
और परिश्रम को सिद्धि-सेतु बनाइए।

1️⃣2️⃣
हे शारदा सरस्वती,
गुरुओं के चरणों में श्रद्धा और सीख में विनम्रता दीजिए।
मतभेद हों तो संवाद का सेतु रचूँ,
और ज्ञान से पहले आचरण को सुंदर बनाऊँ।

1️⃣3️⃣
हे वागीश्वरी,
मेरी वाणी से परनिंदा, मिथ्याभाषण और कटाक्ष दूर हों।
सत्य कहने का साहस दें, और सत्य को कहने की कोमलता भी,
ताकि शब्द किसी हृदय को चोट नहीं—सहारा दें।

1️⃣4️⃣
हे सरस्वती माँ,
विद्या के साथ विवेक, कुशलता के साथ करुणा,
और सफलता के साथ सादगी का वरदान दीजिए;
यही त्रिवेणी मेरी पहचान बने।

1️⃣5️⃣
हे जगदम्बा शारदा,
ज्ञान को सेवा में, प्रतिभा को जन-कल्याण में,
और उपलब्धियों को कृतज्ञता में रूपांतरित कर दीजिए—
ताकि मेरी यात्रा केवल मेरी नहीं, सबकी हो।

1️⃣6️⃣
हे अमल वाग्देवी,
अंतर का तमस मिटे, सतोगुण का प्रकाश फले-फूले।
कर्म में निष्कपटता, संगति में सद्भाव,
और साधना में निरंतरता का आशीष दीजिए।

1️⃣7️⃣
हे शारदा देवी,
शब्द, शिल्प और चिन्तन—तीनों में सौंदर्य और सत्य का संगम हो।
रचना में रस, भाव में शुचिता,
और मति में मर्यादा सदा जाग्रत रहे।

1️⃣8️⃣
हे वाणी-प्रदायिनी,
अधीरता को धैर्य में, हताशा को आशा में बदल दीजिए।
लक्ष्य स्पष्ट रहे, पग नियमित रहें,
और मार्ग में मिलने वाली सीखें मेरा संबल बनें।

1️⃣9️⃣
हे सरस्वती,
मेरी जिह्वा पर आपका “ऐं” बीज बस जाए,
हर उच्चारण को पावन करे, हर मौन को प्रकाशमान करे—
और आपकी शीतल कृपा चित्त पर नित्य बरसती रहे।

2️⃣0️⃣
हे माँ सरस्वती,
ज्ञान-दीप मेरे भीतर प्रज्वलित रखिए,
ताकि मैं अज्ञान, अहं और आलस्य के धुंध में न उलझूँ;
और जो भी जानूँ, वह जग के काम आए—यही आपकी प्रसाद-छाया हो।

🌼 समापन पंक्तियाँ
जय माँ सरस्वती — वंदे शारदे!
विद्या बने संस्कार, वाणी बने सेवा, और ज्ञान बने करुणा।

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