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अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली शिव भक्ति मंत्र और श्लोक, जिनका जप श्रद्धा और भक्ति से किया जाए तो जीवन में शांति, शक्ति और शिवकृपा का अनुभव होता है।

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🔷 मूल शिव मंत्र
ॐ नमः शिवाय
📜 अर्थ (भावार्थ):
“ॐ” — ब्रह्मांड की आद्य ध्वनि, सृष्टि का मूल।
“नमः” — विनम्रता से नमन करना, अहंकार का त्याग।
“शिवाय” — शिव को, जो कल्याण स्वरूप, सर्वव्यापक और शुद्ध चेतना हैं।
इस मंत्र का संपूर्ण भाव है —
“हे शिव! मैं आपको नमन करता हूँ,
अपने मन, वचन और कर्म को आपके चरणों में अर्पित करता हूँ।”
यह पंचाक्षरी महामंत्र आत्मा को शुद्ध करता है,
संसार के बंधनों से मुक्त करता है और
भक्त को शिव से एकत्व का अनुभव कराता है।
🌿 लाभ:
मन की शांति:
मंत्र जप से विचारों का शोर शांत होता है,
और भीतर स्थिरता आती है।
नकारात्मक ऊर्जा का शमन:
यह मंत्र एक अदृश्य कवच की तरह
भय, क्रोध और नकारात्मक प्रभावों को दूर करता है।
जीवन में संतुलन:
यह पंचाक्षरी मंत्र हमें समभाव सिखाता है —
सुख-दुख, लाभ-हानि, जीत-हार में संतुलित रहना।
आत्मिक बल:
निरंतर जप से आत्मविश्वास, धैर्य और आंतरिक शक्ति बढ़ती है,
जिससे कठिन समय भी सहज हो जाता है।
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🔷 महामृत्युंजय मंत्र
ॐ त्र्यंबकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥
अर्थ:
हम त्रिनेत्रधारी शिव की उपासना करते हैं, जो जीवनदायक, सुगंधित और पुष्टि देने वाले हैं। जैसे ककड़ी डंठल से अलग होती है, वैसे ही हम मृत्यु के बंधनों से मुक्त हों और अमरत्व को प्राप्त करें।
लाभ:
– रोग, भय और आकस्मिक संकटों से रक्षा
– दीर्घायु और आरोग्यता
– मृत्यु के भय से मुक्ति
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🔷 शिव ध्यान श्लोक
करचरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा।
श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम्॥
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व।
जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेव शंभो॥
अर्थ:
हे शिव! मेरे हाथ, पैर, वाणी, शरीर, कान, आँखों और मन से जो भी अपराध हुए हैं — जाने या अनजाने — उन सबको क्षमा करें। हे करुणासागर महादेव! आप जय हो।
लाभ:
– आत्मग्लानि का क्षय
– अंतरशुद्धि और क्षमा भाव
– शिव से गहरा आत्मिक संबंध
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🔷 शिव तांडव स्तोत्र (आरंभिक पंक्ति)
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्॥
अर्थ:
भगवान शिव की जटाओं से गंगा की धारा प्रवाहित हो रही है और उनके गले में सर्पों की माला लटक रही है – यह उनका तांडव रूप है, जो भय और सौंदर्य दोनों का प्रतीक है।
लाभ:
– ऊर्जा और आत्मबल की वृद्धि
– नृत्य, कला और ध्यान साधना में श्रेष्ठता
– शिव की वीरता और वैराग्य का स्मरण
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🔷 लिंगाष्टकम् (एक प्रसिद्ध श्लोक)
ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं
निर्मलभासित शोभितलिङ्गम्।
जनमरणपरिहारणलिङ्गं
तत् प्रणमामि सदा शिवलिङ्गम्॥
अर्थ:
जो लिंग ब्रह्मा, विष्णु और देवताओं द्वारा पूजित है, जो निर्मल प्रकाश से युक्त है, जो जन्म-मरण के भय को दूर करता है — उस शिवलिंग को मैं सदा प्रणाम करता हूँ।
लाभ:
– शिवलिंग पूजा का दिव्य फल
– जन्म-जन्मांतर के बंधनों से मुक्ति
– मोक्ष की ओर अग्रसरता
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कर्पूरगौरं करुणावतारं
संसारसारं भुजगेन्द्रहारं |
सदा वसन्तं ह्रदयाविन्दे
भंव भवानी सहितं नमामि ॥
🌼 भावार्थ:
कर्पूरगौरं — जो कपूर के समान उज्ज्वल, निर्मल और पवित्र हैं।
करुणावतारं — जो करुणा और दया के साक्षात अवतार हैं।
संसारसारं — जो सम्पूर्ण सृष्टि के सार और कारण हैं।
भुजगेन्द्रहारं — जो सर्पराज वासुकि को हार के रूप में धारण करते हैं।
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे — जो सदैव भक्तों के हृदय रूपी कमल में विराजमान रहते हैं।
भवं भवानी सहितं नमामि — मैं शिव को, जो माता पार्वती के साथ हैं, बार-बार प्रणाम करता हूँ।
🌟 आध्यात्मिक संदेश:
यह श्लोक भगवान शिव के सौम्य, करुणामयी और दिव्य स्वरूप का ध्यान कराता है।
कपूर जैसा उज्ज्वल वर्ण उनकी निर्मलता का प्रतीक है,
सर्पहार उनके अद्वितीय और निर्भीक स्वरूप को दर्शाता है,
और माता पार्वती के साथ उनका एकत्व जीवन में प्रेम और संतुलन का संदेश देता है।
🌟 लाभ:
– ध्यान में स्थिरता और मन की शुद्धि
– भय, नकारात्मकता और रोगों से रक्षा
– जीवन में प्रेम, संतुलन और करुणा का विकास
– भक्ति में गहराई और ईश्वर से निकटता
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