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🔸 श्री गणेश भक्ति शायरी संग्रह
(सिद्धि, शांति और शुभता से भरपूर पंक्तियाँ)

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जिस घर में गूंजे गणपति नाम,
हर दिन वहाँ हो सुख का वास।
– गणेश जी का नाम केवल एक उच्चारण नहीं, वह घर का आशीर्वाद है। जब भी कोई परिवार श्रद्धा से ‘जय श्री गणेश’ कहता है, उस घर में सकारात्मक ऊर्जा, समृद्धि और मानसिक शांति का स्थायी निवास हो जाता है। गणपति का स्मरण करते ही विघ्नों की बाधाएँ स्वयं हटने लगती हैं।

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भावार्थ (Meaning):
यह शायरी केवल कविता नहीं,
बल्कि श्री गणेश जी की उपस्थिति और कृपा की अनुभूति है।
🔹 “गणेश स्मरण” – यानी आंतरिक शांति का प्रारंभ
🔹 “विघ्न हटता है” – जब हम श्रीगणेश को हृदय से पुकारते हैं,
तो बाधाएँ केवल बाहर से नहीं, मन के भीतर से भी दूर होती हैं।
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जहाँ गणेश का वास हो प्यारा,
वहाँ संकट ना टिके दोपारा।
– गणेश जी को ‘विघ्नहर्ता’ कहा गया है — अर्थात संकटों को हरने वाले। जब कोई व्यक्ति या स्थान उनकी कृपा के प्रभाव में होता है, वहाँ चाहे कितने भी कठिन हालात क्यों न हों, वे अधिक देर नहीं टिकते। श्रद्धा और समर्पण के साथ यदि हम गणेश का वास अपने जीवन में कर लें, तो भय और दुख पास भी नहीं आते।
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श्री गणेश का नाम जब सच्चे मन से आता है,
हर बिगड़ा काम अपने आप बन जाता है।
– जीवन में जब सारे प्रयास निष्फल होने लगते हैं, तब गणपति बाप्पा का नाम चमत्कारी उपाय बनता है। उनका नाम ‘सिद्धिदाता’ है — वह शक्ति जो असंभव को भी संभव बना देती है। जब मन पूर्ण विश्वास से उनका स्मरण करता है, तो अटके कार्य बिना रुकावट पूर्ण होने लगते हैं।
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जिस घर में गूंजता है ‘जय गणेश देवा’,
वहाँ दुख, दरिद्रता टिके ना कभी सेवा।
– गणेश जी के नाम का उच्चारण, आरती और सेवा घर की ऊर्जा को पवित्र बनाते हैं। ऐसे घरों में नकारात्मकता ठहर नहीं पाती। जो लोग नियमित रूप से श्री गणेश की पूजा करते हैं, उनके जीवन में आर्थिक, मानसिक और पारिवारिक सुख स्थायी हो जाते हैं।
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मोदक जैसा मीठा है तेरा नाम,
गणपति बाप्पा! तू हर भक्त की जान।
– मोदक, गणेश जी का प्रिय भोग है और उनका नाम भी वैसा ही मधुर। वह नाम जो जीवन के कड़वे अनुभवों में भी मिठास भर देता है। श्रद्धालु जब ‘गणपति बाप्पा मोरया’ बोलता है, तब वह अपने मन की संपूर्ण पीड़ा भूल जाता है — बस रह जाती है शांति और भक्ति।
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प्रथम पूज्य गणराज तू,
हर आरंभ में साथ तू — सदा सहाय, सदा दयालु।
– गणेश जी को सभी शुभ कार्यों की शुरुआत में प्रथम पूज्य माना गया है। इसका कारण है कि वे सफलता और स्थिरता के प्रतीक हैं। आरंभ में उनका आह्वान करना, जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उनकी कृपा का स्वागत करना है। वे केवल मार्ग दर्शक नहीं, अपितु कृपालु संरक्षक भी हैं।
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माथे पर तिलक, हाथों में लड्डू,
जो भी तुझे ध्याता, पाता है तूफ़ानों में भी तृप्ति और सुख।
– श्री गणेश जी का रूप ही आश्वासन है – उनके माथे का तिलक आत्मविश्वास का प्रतीक है और हाथों में रखा लड्डू उस आनंद का जो भक्त को उनकी शरण में मिलता है। जीवन में चाहे कितने ही तूफान आएं, जब कोई श्रद्धा से गणेश जी को याद करता है, तो उसे भीतर से संतोष, स्थिरता और समाधान मिलता है।
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गणपति बाप्पा! तेरे चरणों में जो शीश झुकाता है,
वह जीवन की हर कठिनाई से मुस्कुराकर निकल जाता है।
– गणेश जी के चरणों में विनम्रता से झुकना केवल एक क्रिया नहीं, वह आत्मसमर्पण का प्रतीक है। जब हम स्वयं को उनके चरणों में अर्पित कर देते हैं, तब वे हमारे जीवन से विषाद, भय और विघ्नों को दूर करते हैं। और फिर कठिन परिस्थितियाँ भी हमें तोड़ नहीं पातीं — हम मुस्कुराते हुए आगे बढ़ते हैं।
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संकट हरता, सुखकर्ता, मंगल मूर्ति नाम,
तेरे दर्शन मात्र से बदल जाए मेरा हर काम।
– गणेश जी को ‘विघ्नहर्ता’ और ‘सुखकर्ता’ कहा गया है। उनका नाम मंगलकारी है — अर्थात जो हर दिशा में शुभता और सफलता का संचार करता है। उनके मात्र दर्शन से, उनका स्मरण करते ही जीवन की रुकावटें सहज हो जाती हैं और कार्यों में नई गति आ जाती है।
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जय श्री गणेश! बस नाम तेरा लेना है,
और हर मन, हर दिशा में उजियारा छा जाना है।
– गणेश जी का नाम मन के अंधकार को दूर कर देता है। चिंता, भय, और असमंजस की जगह उम्मीद, स्पष्टता और साहस आ जाता है। यह शायरी हमें प्रेरित करती है कि जब भी जीवन में रास्ता धुंधला लगे — बस ‘जय श्री गणेश’ बोलें — प्रकाश अपने आप छा जाएगा।
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तेरे चरणों की धूल से है जीवन में प्रकाश,
हे विघ्नहर्ता! तू ही है हर भक्त की आस।
– गणेश जी के चरणों की धूल — वह प्रतीक है परम पवित्रता और मार्गदर्शन का। जो भक्त सच्चे मन से उन्हें अपना जीवन समर्पित करता है, उसके लिए गणेश जी संकटों का अंत और आशा का आरंभ बन जाते हैं।
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हे लंबोदर, तू जो साथ चले,
कभी कोई राह मुश्किल नहीं लगती है चले।
– ‘लंबोदर’ — श्री गणेश जी का वह रूप जो संसार की सभी बातों को अपने भीतर समेट कर भी संतुलित रहता है। जब उनका साथ होता है, तब जीवन की सबसे कठिन राहें भी सरल लगती हैं, क्योंकि उनका आशीर्वाद ही सबसे बड़ा संबल बन जाता है।
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गणेश जी की आरती में जो मन लगाता है,
उसका भाग्य खुद विधाता सँवारता है।
– आरती केवल दीप जलाना नहीं, वह भावों की पूर्ण समर्पण यात्रा है। जब कोई अपने चित्त को पूरी श्रद्धा से श्री गणेश की आरती में लगाता है, तो उसका भाग्य उनके कृपा से संवरता चला जाता है। यह आरती हमारे कर्म, विचार और आत्मा को शुभता से भर देती है।