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🔸 श्री गणेश वचन संग्रह
(विघ्नहर्ता के दिव्य उपदेश – आरंभ में शुभता, जीवन में बुद्धिमत्ता)

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🔹 वचन 1
“जो सच्चे मन से मेरी स्तुति करता है,
मैं उसके पथ से हर बाधा हटा देता हूँ।”
– यह वचन हमें याद दिलाता है कि भक्ति केवल बोलने भर की नहीं,
बल्कि सच्चे मन और कर्म से जुड़ी होती है। गणेश जी का स्मरण मन और मार्ग दोनों को साफ करता है।

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🔹 वचन 2
“जहाँ मन सरल है और वाणी मधुर,
वहीं गणेश जी का वास होता है।”
🌿 भावार्थ (Meaning):
श्री गणेश जी केवल मूर्तियों में नहीं बसते,
वे उस सरल मन और मधुर वाणी में बसते हैं,
जहाँ अहंकार का नाम नहीं, और जहां शब्दों में दूसरों को सम्मान देने की भावना हो।
🔹 “मन सरल” – यानी जो द्वेष, तुलना, लोभ से मुक्त हो
🔹 “वाणी मधुर” – जो कटाक्ष नहीं करती, बल्कि प्रेम और विनम्रता की भाषा बोलती है
🔹 वचन 3
“जो श्रद्धा से मेरा स्मरण करता है,
उसके जीवन से विघ्न स्वयं दूर हो जाते हैं।”
अर्थ:
श्री गणेश जी कहते हैं कि सच्चे मन से उनका नाम लेने मात्र से कार्य में आने वाले अवरोध दूर हो जाते हैं।
भाव:
गणपति का स्मरण – सफलता की पहली सीढ़ी।
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🔹 वचन 4
“आरंभ का हर क्षण मेरे नाम से करो,
समापन अपने कर्म से होगा।”
अर्थ:
गणेश जी आरंभ के देवता हैं। वे सिखाते हैं कि हर शुभ कार्य पहले उनके नाम से आरंभ होना चाहिए, और फल की प्राप्ति कर्म पर निर्भर है।
भाव:
‘ॐ श्री गणेशाय नमः’ – हर नई शुरुआत का मंगल मंत्र।
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🔹 वचन 5
“बुद्धि वही श्रेष्ठ है, जो विनम्रता के साथ चले।”
अर्थ:
गणपति बुद्धिदाता हैं, पर वे कहते हैं कि अहंकार से बुद्धि भ्रमित हो जाती है। विनम्रता ही उसे पूजनीय बनाती है।
भाव:
विवेक और नम्रता – यही गणेश का आशीर्वाद है।
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🔹 वचन 6
“जो दूसरों के सुख में आनन्द पाता है,
वह सच्चा भक्त है।”
अर्थ:
गणेश जी मानते हैं कि परोपकार में ही भक्ति की सार्थकता है। दूसरों के लिए अच्छा सोचने वाला ही वास्तव में भक्ति करता है।
भाव:
सच्चा भक्त वही, जो सबके मंगल में रमा हो।
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🔹 वचन 7
“ज्ञान बिना क्रिया अधूरी है,
और क्रिया बिना भक्ति अधूरी।”
अर्थ:
गणेश जी ज्ञान और कर्म दोनों के संतुलन को महत्त्व देते हैं। जो केवल ज्ञान से संतुष्ट हो जाए या केवल कर्म में लीन हो – वह अधूरा है।
भाव:
ज्ञान, कर्म और भक्ति – तीनों का समन्वय ही सच्चा साधन है।
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🔹 वचन 8
“विघ्नों से भागो मत,
मैं तुम्हें शक्ति दूँगा उनका सामना करने की।”
अर्थ:
गणपति केवल विघ्न हटाते ही नहीं, हमें उनका सामना करने का साहस भी देते हैं।
भाव:
गणेश की कृपा हो, तो हर बाधा एक अवसर बन जाती है।
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🔹 वचन 9
“मौन में जो मन को जीते,
वही सच्चा ज्ञानी कहलाता है।”
अर्थ:
गणेश जी ध्यान और मौन के प्रतीक हैं। वे कहते हैं – जो भीतर की आवाज़ को सुनता है, वही सच्चे ज्ञान की ओर बढ़ता है।
भाव:
शांत चित्त, स्थिर मन – यही गणेश की उपासना है।
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🔹 वचन 10
“प्रत्येक दिन एक नया अवसर है,
मुझे स्मरण करके आरंभ करो।”
अर्थ:
गणेश जी हमें प्रेरित करते हैं कि हर सुबह नई शुरुआत हो सकती है – उनके आशीर्वाद के साथ।
भाव:
हर दिन श्रीगणेश का नाम – हर दिन नव आरंभ।
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🔹 वचन 11
“मेरा आकार सरल है, पर मेरा भाव गहरा।
जो समझे वही सच्चा भक्त है।”
अर्थ:
गणेश जी कहते हैं कि उनका रूप प्रतीकात्मक है – बड़ा मस्तक विवेक का, छोटे नेत्र एकाग्रता के।
भाव:
गणपति का हर अंग – एक जीवन संदेश है।
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🔹 वचन 12
“जो श्रद्धा से जपे ‘ॐ गं गणपतये नमः’,
उसका मन निश्चल और कर्म सफल होता है।”
अर्थ:
गणपति मंत्र न केवल विघ्नों को दूर करता है, बल्कि मन को स्थिर और उद्देश्य को स्पष्ट करता है।
भाव:
गणपति मंत्र – आत्मबल का महान स्रोत।
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🔹 वचन 13
“शुद्ध हृदय से जो मेरा स्मरण करता है,
वहीं से उसका जीवन सरल बनना शुरू हो जाता है।”
– यह वचन हमें सरल जीवन जीने की कुंजी देता है –
स्वच्छ भावना, सच्चा नामस्मरण और समर्पण ही सच्चा साधन है।
🙏 गणेश वचनों का स्मरण करें —
आपके जीवन में शुभता, ज्ञान और संतुलन का प्रवेश हो।
🌺 जय श्री गणेश | मंगलमूर्ति मोरया 🌺