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🔷 श्रीकृष्ण वचन – विस्तार सहित
(भगवान के उपदेश जो जीवन को धर्म, भक्ति और आत्मज्ञान से भर दें)

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1.
“जो अपने मन को जीत लेता है, वही सच्चा विजेता होता है।”
🌿 भावार्थ:
श्रीकृष्ण कहते हैं कि संसार के सबसे कठिन युद्ध बाहरी नहीं, बल्कि भीतरी होते हैं।
मन में छिपी इच्छाएँ, मोह, क्रोध, ईर्ष्या और अहंकार हमें हर पल चुनौती देते हैं।
जो साधक इन आंतरिक शत्रुओं पर विजय पा लेता है, वही वास्तविक विजेता है।
अर्जुन ने कुरुक्षेत्र में धनुष-बाण से युद्ध जीता,
पर सच्चा अर्जुन वही है जो अपने भीतर के मोह और भय को जीतकर
शांत, संतुलित और धर्ममय जीवन जीता है।
—

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2.
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥”
— श्रीमद्भगवद्गीता 2.47
“जब कर्म फल की इच्छा के बिना किया जाए, तब वह सच्चा योग बन जाता है।”
🌿 भावार्थ:
तू सिर्फ कर्म कर, फल की इच्छा मत कर।
कर्म का फल ईश्वर के हाथ में है —
इसलिए फल पर नहीं,
कर्तव्य पर ध्यान दो।
फल की चिंता करना हमें बंधन में डाल देता है और मन को अशांत करता है।
कृष्ण कहते हैं कि कर्तव्य का पालन करते हुए परिणाम को ईश्वर पर छोड़ देना ही
निष्काम कर्म है।
जब हम बिना स्वार्थ के कार्य करते हैं, तब हमारे कर्म पूजा बन जाते हैं
और यही सच्चा योग है — जिसमें कर्म, भक्ति और शांति का संगम होता है।
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3.
“जो अपने मित्र और शत्रु को समान दृष्टि से देखे, वही सच्चा ज्ञानी है।”
🌿 भावार्थ:
दुनिया में संबंध समय और परिस्थिति के साथ बदलते रहते हैं।
जो आज मित्र है, वह कल शत्रु बन सकता है, और जो आज शत्रु है, वह कल मित्र बन सकता है।
कृष्ण सिखाते हैं कि हमें सभी के साथ समान दृष्टि रखनी चाहिए,
क्योंकि हर जीव में ईश्वर का अंश है।
ऐसा समभाव रखने वाला ही सच्चा ज्ञानी कहलाता है,
जिसका मन द्वेष और पक्षपात से मुक्त होता है।
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4.
“मनुष्य अपने विश्वास से बनता है, जैसा वह विश्वास करता है, वैसा ही बन जाता है।”
🌿 भावार्थ:
हमारे विचार और विश्वास ही हमारे जीवन का स्वरूप तय करते हैं।
अगर हम अपने बारे में नकारात्मक सोचते हैं, तो हम वैसा ही जीवन जीते हैं।
अगर हम अपने भीतर की ईश्वरीय शक्ति पर विश्वास रखते हैं,
तो हम असंभव को भी संभव बना सकते हैं।
कृष्ण हमें प्रेरित करते हैं कि हमेशा अपने विश्वास को शुद्ध, ऊँचा और सकारात्मक रखें।
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5.
“अहंकार त्यागो, क्योंकि वही तुम्हें सत्य से दूर करता है।”
🌿 भावार्थ:
अहंकार एक ऐसा पर्दा है जो हमें सत्य देखने नहीं देता।
यह हमें यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि हम ही सब कुछ हैं,
जबकि वास्तविकता में हम ईश्वर के हाथ में एक साधन मात्र हैं।
विनम्रता वह दीपक है जो हमें सत्य और ज्ञान के मार्ग पर ले जाता है।
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6.
“सच्चा भक्त वही है, जो हर परिस्थिति में मेरा स्मरण करता है।”
🌿 भावार्थ:
भक्ति केवल सुख के समय ही नहीं, दुःख और कठिनाई के समय भी होनी चाहिए।
जो भक्त आनंद और संकट दोनों में समान भाव से प्रभु का स्मरण करता है,
वह मेरे सबसे निकट होता है और मैं उसकी रक्षा करता हूँ।
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7.
“संकट के समय धैर्य ही तुम्हारा सबसे बड़ा अस्त्र है।”
🌿 भावार्थ:
जब जीवन में कठिनाई आती है, तो अधिकतर लोग घबरा जाते हैं
और आवेग में गलत निर्णय ले लेते हैं।
कृष्ण कहते हैं कि धैर्य ही वह शक्ति है जो
संकट को अवसर में बदल देती है और हमें सही दिशा दिखाती है।
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8.
“भक्ति और ज्ञान, दोनों पंख हैं मोक्ष के पक्षी के।”
🌿 भावार्थ:
सिर्फ ज्ञान होने से अहंकार आ सकता है और केवल भक्ति होने से अंधविश्वास।
दोनों का संतुलन आत्मा को मोक्ष के मार्ग पर ले जाता है।
ज्ञान हमें सत्य का बोध कराता है और भक्ति हमें उस सत्य से जोड़ती है।
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9.
“जो दान बिना अपेक्षा के किया जाए, वह ही सच्चा पुण्य है।”
🌿 भावार्थ:
दान तभी पुण्यकारी है जब उसमें कोई स्वार्थ या प्रतिफल की इच्छा न हो।
कृष्ण सिखाते हैं कि निस्वार्थ भाव से दिया गया दान
आत्मा को पवित्र करता है और ईश्वर को प्रिय होता है।
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10.
“मैं हर उस हृदय में वास करता हूँ जहाँ सत्य, प्रेम और सेवा का निवास हो।”
🌿 भावार्थ:
ईश्वर केवल मंदिरों, मूर्तियों या तीर्थों में नहीं,
बल्कि उस हृदय में रहते हैं जो सत्यनिष्ठ, प्रेमपूर्ण और सेवा भाव से भरा हो।
कृष्ण का यह वचन हमें बाहरी आडंबर से हटाकर आंतरिक भक्ति की ओर ले जाता है।
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11.
“तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल पाने में नहीं।”
🌿 भावार्थ:
कृष्ण गीता में स्पष्ट कहते हैं कि हम केवल अपने कर्म के अधिकारी हैं,
उसके परिणाम के नहीं।
फल की चिंता हमें बेचैन करती है,
जबकि कर्तव्य पर ध्यान हमें स्थिर और शांत रखता है।
यह वचन हमें निष्काम कर्म की दिशा देता है —
जहाँ कामना नहीं, केवल कर्तव्य होता है।
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12.
“क्रोध से भ्रम उत्पन्न होता है, भ्रम से स्मृति लुप्त हो जाती है।”
🌿 भावार्थ:
क्रोध एक ऐसी आग है जो विवेक को जलाकर राख कर देती है।
जब क्रोध आता है, हम स्पष्ट रूप से सोच नहीं पाते
और अपने ही हित को नुकसान पहुँचा देते हैं।
कृष्ण सिखाते हैं कि संयमित वाणी और शांत मन
हर स्थिति में सही निर्णय लेने में मदद करते हैं।
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13.
“जिसे क्षमा करने की शक्ति है, वही सबसे शक्तिशाली है।”
🌿 भावार्थ:
क्षमा दुर्बलों का नहीं, बल्कि साहसी हृदय का गुण है।
यह न केवल दूसरों को मुक्त करती है,
बल्कि हमें भी भीतर से हल्का और शांत बनाती है।
कृष्ण का यह वचन बताता है कि क्षमा आत्मिक बल का सर्वोच्च रूप है।
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14.
“मैं उस प्रेम को स्वीकार करता हूँ जो निष्कपट और निर्मल हो।”
🌿 भावार्थ:
ईश्वर के लिए बाहरी आडंबर, भव्य भेंट या दिखावा आवश्यक नहीं।
वे केवल उस प्रेम को स्वीकार करते हैं जो बिना स्वार्थ के,
शुद्ध और सच्चे मन से किया गया हो।
कृष्ण भक्ति में हृदय की पवित्रता को सर्वाधिक महत्व देते हैं।
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15.
“धर्म वह है जो सभी जीवों के कल्याण में हो।”
🌿 भावार्थ:
सिर्फ अपने लिए जीना धर्म नहीं कहलाता।
सच्चा धर्म वह है जो सभी के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करे।
कृष्ण कहते हैं कि जब हम दूसरों के सुख-दुःख को अपना मानते हैं,
तभी हम धर्म के सच्चे पथ पर होते हैं।
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16.
“लोभ से आत्मा का प्रकाश मंद पड़ जाता है।”
🌿 भावार्थ:
अत्यधिक इच्छाएँ और लालच मन को बेचैन और असंतुष्ट कर देते हैं।
संतोष वह दीपक है जो भीतर के प्रकाश को प्रखर रखता है।
कृष्ण सिखाते हैं कि संतोष में ही सच्चा आनंद है।
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17.
“जो अपने इंद्रियों को संयम में रखता है, वही सच्चा योगी है।”
🌿 भावार्थ:
इंद्रियों को अनियंत्रित छोड़ देने से मन चंचल और अस्थिर हो जाता है।
योगी वही है जो अपनी इच्छाओं और भावनाओं पर नियंत्रण रखता है।
कृष्ण कहते हैं कि संयम ही आत्मबल और स्थिरता का स्रोत है।
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18.
“ज्ञान बिना विनम्रता के, और भक्ति बिना सेवा के अधूरी है।”
🌿 भावार्थ:
ज्ञान हमें ऊँचा उठाने के बजाय अहंकार में बदल सकता है,
अगर उसमें विनम्रता न हो।
भक्ति भी केवल व्यक्तिगत मुक्ति तक सीमित रह सकती है,
अगर उसमें सेवा का भाव न हो।
कृष्ण सिखाते हैं कि विनम्र ज्ञान और सेवा-युक्त भक्ति ही पूर्ण है।
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19.
“जो मुझे अपने हर कार्य में देखता है, मैं भी उसके हर कार्य में साथ रहता हूँ।”
🌿 भावार्थ:
जब हम अपने जीवन के हर कार्य को ईश्वर को समर्पित मानते हैं,
तो भक्ति हमारे हर कर्म का हिस्सा बन जाती है।
कृष्ण का यह वचन आश्वासन देता है कि
ऐसा भक्त कभी अकेला नहीं होता —
प्रभु सदैव उसके साथ चलते हैं।
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20.
“सच्ची विजय स्वयं पर विजय है।”
🌿 भावार्थ:
दूसरों को हराना क्षणिक उपलब्धि है,
लेकिन अपने भीतर के दोषों, भय और कमजोरियों को हराना
वास्तविक और स्थायी विजय है।
कृष्ण सिखाते हैं कि आत्मविजय ही मोक्ष का द्वार है।
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🙏 श्रीकृष्ण के इन 20 वचनों का प्रतिदिन स्मरण करें,
ताकि आपका जीवन प्रेम, धर्म और शांति से आलोकित हो।
🌼 जय श्रीकृष्ण 🌼