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🌸 श्रीहरि (विष्णु जी) को समर्पित भक्ति शायरी

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🌸 हरि नाम से दिन सजे,
हर कार्य में शुभता बहे।
विष्णु कृपा जो साथ हो जाए,
जीवन की नैया पार हो जाए।
🌿 भावार्थ:
– यदि दिन की शुरुआत श्रीहरि के नाम से हो,
तो दिन केवल समय नहीं, एक शुभ अवसर बन जाता है।
– जब मन हर कार्य में प्रभु को शामिल करता है,
तो कर्मों में एक विशेष शुभता और साक्षात्कार प्रकट होता है।
– और जब श्रीहरि की कृपा साथ हो जाए —
तो चाहे जीवन में कितनी ही लहरें क्यों न हों,
जीवन की नैया हर बार किनारे लग ही जाती है।

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सत्संग, सेवा, सच्चा प्रेम,
यही हैं प्रभु तक जाने के सेतु प्रेम।
– श्रीहरि तक पहुँचने के लिए केवल पूजा-पाठ ही पर्याप्त नहीं,
बल्कि हमें सत्संग में बैठकर ज्ञान अर्जित करना होता है,
सेवा में रमकर अहंकार को त्यागना होता है,
और हर जीव में सच्चे प्रेम का भाव रखना होता है।
यही वो तीन सेतु हैं जो भक्त को प्रभु से जोड़ते हैं।
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ध्यान से जब पुकारो विष्णु नाम,
मन को मिले अपार विश्राम।
– भगवान विष्णु का नाम लेने मात्र से
मन का व्याकुलता से भरा सागर शांत हो जाता है।
उनका स्मरण वह ध्यान है जो भीतर से शांति का स्रोत खोल देता है।
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हरि के चरणों में जो मन रमता है,
वह संसार में भी मुक्त रहकर जीता है।
– वास्तविक मुक्ति केवल शरीर त्यागने में नहीं,
बल्कि जीवन में हर पल ईश्वर में रमे रहने में है।
जो भक्त श्रीहरि के चरणों में मन लगाता है,
वह भले ही गृहस्थ जीवन में हो — पर भीतर से पूर्ण मुक्त रहता है।
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राम, कृष्ण या नारायण नाम,
हर रूप में प्रभु एक ही धाम।
– यह शायरी श्रीहरि के विविध रूपों का स्मरण कराती है।
वो राम बनकर मर्यादा सिखाते हैं, कृष्ण बनकर प्रेम और नीति,
और नारायण रूप में संपूर्ण सृष्टि के पालक होते हैं।
भक्त के लिए यह ज्ञान परम शांति का स्रोत बनता है।
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हर शनिवार, हर रविवार,
प्रभु श्रीहरि का कीजिए सत्कार।
– ईश्वर केवल एक दिन के नहीं होते,
परन्तु यदि हम अपने जीवन में कुछ विशेष समय भी
प्रभु को समर्पित कर लें, तो वह समय संजीवनी बन जाता है।
उनके स्मरण से दिन विशेष नहीं, संपूर्ण जीवन विशेष बन जाता है।
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संपत्ति से नहीं, सरलता से मिलता है भगवान,
मन की सच्चाई ही है भक्ति की पहचान।
– यह पंक्ति बताती है कि ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए
धन, यज्ञ, या दिखावा जरूरी नहीं —
ज़रूरत है तो केवल सच्चे हृदय, निर्मल मन और निष्कलंक भावना की।
सच्चे भाव से किया गया स्मरण ईश्वर को तुरन्त आकर्षित करता है।
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श्रीहरि की मूरत जब आँखों में बस जाए,
तो बाहरी दुनिया की मोह-माया हट जाए।
– जब मन एकाग्र होकर भगवान विष्णु के रूप पर केंद्रित होता है,
तो संसार की चंचलता और मोह फीकी पड़ जाती है।
ऐसे भक्त को फिर सांसारिक बंधन नहीं रोक सकते —
वह प्रभु की कृपा में स्थित हो जाता है।
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श्रीहरि का वास वहाँ होता है,
जहाँ प्रेम और क्षमा का प्रकाश होता है।
– ईश्वर बाहरी मंदिरों में उतने नहीं होते,
जितने उस हृदय में निवास करते हैं जहाँ प्रेम है,
दूसरों के लिए क्षमा है, और आत्मा में विनम्रता है।
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हरि नाम का जाप जो प्राणों से करे,
उसका भाग्य स्वयं नारायण लिखे।
– श्रीहरि के नाम का जाप केवल पूजा का कर्म नहीं —
वह आत्मा की पुकार है।
जो हृदय से हरि का जाप करता है,
उसके लिए नियति स्वयं प्रभु की लेखनी से सुधर जाती है।
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