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🌿 शुभ गुरुवार | जय श्रीहरि विष्णु 🌿
“हे भगवान, सुख देना तो बस इतना देना कि जिसमें
अहंकार न आये —
और दुःख देना तो बस इतना कि जिसमें आस्था ना टूटे।”
🕊️ विस्तार और भावार्थ:
यह प्रार्थना कोई साधारण निवेदन नहीं,
बल्कि जीवन के संतुलन की गहराई को समझने की एक भक्तिपूर्ण अभिव्यक्ति है।
जब हम श्रीहरि से कहते हैं —
“सुख देना तो इतना देना कि अहंकार न आये,”
तो हम ध्यान से चुना हुआ सुख माँग रहे हैं —
वह सुख जो हमें दीन न बनाए,
और न ही इतना बड़ा कर दे कि हम प्रभु को भूल जाएँ।
> अहंकार वह पर्दा है, जो ईश्वर के प्रकाश को हम तक पहुँचने से रोक देता है।
इसलिए कम में संतोष और सफलता में विनम्रता ही सच्चा सुख है।
जब हम कहते हैं —
“दुःख देना तो इतना देना कि जिसमें आस्था न टूटे,”
तो हम प्रभु से निवेदन करते हैं कि —
अगर जीवन में परीक्षा आए,
तो वह इतनी कठोर न हो जाए कि विश्वास ही टूट जाए।
> दुःख वह औषधि है जो अंतर्मन को माँजती है,
पर जब वह असहनीय हो जाए, तो आत्मा थकने लगती है।
इसलिए भक्त कहता है:
“हे प्रभु, दुःख दो… पर इतना कि मैं टूटूँ नहीं, बल्कि और जुड़ जाऊँ आपसे।”
🌼 उदाहरण – जीवन से जुड़ाव:
– एक किसान जब अच्छी फसल पाकर भी कहे —
“प्रभु, ये आपकी कृपा है, मैं तो बस निमित्त हूँ,”
तो वह सुख में भी विनम्र रहता है।
– और वही किसान जब सूखा पड़ने पर भी
“जो होगा, अच्छा होगा — नारायण सब देख रहे हैं,”
कहकर प्रयास करता रहे,
तो वह दुःख में भी आस्था नहीं खोता।
🙏 निष्कर्ष:
यह प्रार्थना सिखाती है —
ना तो सुख हमें प्रभु से दूर करे,
ना दुःख हमें प्रभु पर से संदेह करना सिखाए।
बल्कि हर परिस्थिति में हम कह सकें —
“हे श्रीहरि, आप जैसे चाहें, वैसे रखें —
बस मेरा विश्वास और विनम्रता बनी रहे।”
📿 “श्रीहरि की भक्ति में सुख भी साधना है,
और दुःख भी साधना है —
यदि भाव शुद्ध और हृदय समर्पित हो।”
✨ भक्ति की बूँदें – हर प्रार्थना प्रभु से जुड़ने का एक और मधुर अवसर है।
This picture was submitted by Smita Haldankar.
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