Mahakal Shayari

महाकाल शायरी

अकाल मृत्यु वो मरे जो कार्य करे चांडाल का काल भी उसका क्या करे जो भक्त हो महाकाल का

सबसे बड़ा तेरा दरबार है
तू ही सब का पालनहार है
सजा दे या माफी महाकाल
तू ही हमारी सरकार है

ना गिनकर देता है
ना तोलकर देता है
जब भी मेरा महाकाल देता है
दिल खोल कर देता है

महाकाल के दरबार में दुनिया बदल जाती है
रहमत से हाथ की लकीर बदल जाती है
लेता है जो भी दिल से महाकाल का नाम
एक पल में उसकी तकदीर बदल जाती है

नीम का पेड कोई चन्दन से कम नही
उज्जैन नगरी कोई लंदन से कम नही
जहाँ बरस रहा है मेरे महाकाल का प्यार
वो दरबार भी कोई जन्नत से कम नही

आंधी तुफान से वो डरते है
जिनके मन मेँ प्राण बसते हैँ
जिनके मन मे ‪‎‬महाकाल बसते हैँ
वो मौत देखकर भी हँसते हैँ

बीमारे मोहब्बत हूँ दवा मांग रहा हूँ
मेरे बाबा के दामन की हवा मांग रहा हूँ
ज़ंज़ीर बांध क़र मुझे ले चलिए महाकाल के पास
मुजरिम हूँ आपके दर्शन की सज़ा मांग रहा हूँ

ना पूछो मुझसे मेरी पहचान
मैं तो भस्मधारी हूँ
भस्म से होता जिनका श्रृंगार
मैं उस महाकाल का पुजारी हूँ

चिलम के धुंये में हम खोते चले गये
बाबा होश में थे मदहोश होते चले गये
जाने क्या बात है महाकाल के नाम में
न चाहते हुये भी उनके होते चले गये

महाकाल ने जिस पर भी डाली छाया
उसकी किस्मत की पलट गई काया
वो सब मिला उसे बिन मांगे ही
जो कभी किसी ने ना पाया

मुझमें कोई छल नहीं, तेरा कोई कल नहीं
मौत के ही गर्भ में, ज़िंदगी के पास हूँ
अंधकार का आकार हूँ, प्रकाश का मैं प्रकार हूँ
मैं महाकाल हूँ। मैं महाकाल हूँ। मैं महाकाल हूँ।

यह कैसी घटा छाई हैं
हवा में नई सुर्खी आई है
फ़ैली है जो सुगंध हवा में
जरुर महाकाल ने चिलम लगाई है

महाकाल की बनी रहे आप पर छाया
पलट दे जो आपकी किस्मत की काया
मिले आपको वो सब इस अपनी ज़िन्दगी में
जो कभी किसी ने भी ना पाया

भूतकाल को अभी भूल मत
वर्तमान अभी बाकी है
ये तो महाकाल की एक लहर है
अभी तो तूफ़ान आना बाकी है

मौत का डर उनको लगता है
जिनके कर्मों मे दाग है
हम तो महाकाल के भक्त है
हमारे तो खून में ही आग है

कृपा जिनकी मेरे ऊपर
तेवर भी उन्हीं का वरदान है
शान से जीना सिखाया जिसने
महाकाल उनका नाम है

तेरी जटाओं का एक छोटा सा बाल हूँ
तेरे होने से मैं बेमिसाल हूँ
तेरे होते मुझे कोई छू भी ना पाये
क्योंकि मेरे महाकाल मैं तेरा लाल हूँ

लोग कहते हैं अगर हाथों की लकीरें
अधूरी हो तो किस्मत अच्छी नही होती
लेकिन हम कहते हैं कि सर पर हाथ
‘महाकाल’ का हो तो लकीरों की ज़रूरत नही होती

शेरो वाली दहाड़ फ़िर सुनाने आए हैं
आग उगलने को फ़िर परवाने आये हैं
रास्ता भी छोड़ दिया स्वयं काल ने
जब देखा उसने “महाकाल” के दीवाने आए हैं

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