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जय राम सदा सुख धाम हरे। रघुनायक सायक चाप धरे।।
भव बारन दारन सिंह प्रभो। गुन सागर नागर नाथ बिभो।।
भावार्थ:-हे नित्य सुखधाम और (दु:खों को हरने वाले) हरि! हे धनुष-बाण धारण किए हुए रघुनाथजी! आपकी जय हो। हे प्रभो! आप भव (जन्म-मरण) रूपी हाथी को विदीर्ण करने के लिए सिंह के समान हैं। हे नाथ! हे सर्वव्यापक! आप गुणों के समुद्र और परम चतुर हैं॥1
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